img

Odisha High Court: ओडिसा के हाई कोर्ट ने महिलाओं को मैटिरनिटी लीव यानी मातृत्व अवकाश न देना अपमानजनक बताया है। संविधान के अनुच्छेद 21  के तहत यदि ऐसा किया जाता है तो यह उनके मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल के एक शिक्षक को राहत देते हुए कहा कि यदि किसी महिला कर्मचारी को उसके इस बुनियादी मानवाधिकार से वंचित किया जाता है तो यह एक व्यक्ति के रूप में उसकी गरिमा पर हमला है. उन्होंने कहा, और इस तरह यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.

क्या है पूरा मामला?

एक महिला टीचर को 19 दिसंबर, 1997 को क्योंझर जिले के फकीरपुर के प्रैक्टिसिंग गर्ल्स हाई स्कूल में असिस्टेंट टीचर के रूप में अप्वाइंट किया गया था. जिस स्कूल में महिला का अप्वाइंटमेंट हुआ था वह पूरी तरह से ओडिशा सरकार से मान्यता प्राप्त और आर्थिक सहायता प्राप्त स्कूल था. महिला ने 2013 में बच्चे की डिलवरी के लिए अप्लाई किया था छुट्टी मिल जाने के बावजूद जिला शिक्षा विभाग ने महिला को छुट्टी के दौरान का वेतन टेक्निकल ग्राउंड के आधार पर देने से मना कर दिया. इस बात की शिकायत के लिए महिला ने हाईकोर्ट का रुख किया. 

क्या बोली ओडिशा हाईकोर्ट?

कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला के जीवन में मां बनना सबसे बुनियादी, प्राकृतिक और स्वाभाविक घटना है. इसके लिए किसी भी महिला को  बच्चे के जन्म देने की सुविधा के लिए जो भी आवश्यक है वह करना उसके एंप्लायर की जिम्मेदारी है. अदालत ने कहा कि मानवीय आधार पर उस महिला के प्रति नियोक्ता को उस महिला के प्रति सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए और उसे उन शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए जो एक कामकाजी महिला को गर्भ में बच्चे को ले जाने के दौरान या जन्म के बाद बच्चे के पालन-पोषण के दौरान कार्यस्थल पर अपने कर्तव्यों का पालन करने में आती हैं.