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समलैंगिक संबंधों को मिला मोहन भागवत का सपोर्ट

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देश– समलैंगिता भारत का अहम मुद्दा बन गई है। हर ओर इस परिपेक्ष्य में बयान बाजी जारी है। देश में जहां कुछ लोग इसे सही बता रहे हैं। वहीं कई लोगों का कहना है कि भारत का समाज अभी इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। वहीं अब समलैंगिक संबंधों को लेकर आरएसएस का बयान सुर्खियों में है। 
क्योंकि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का समलैंगिक जोड़े के सम्बंध में बयान उनके प्रति सहानुभूति दर्शाता है और कई सन्देश देता है। मोहन भागवत ने कहा था कि उन्हें हमारे समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए। क्योंकि वह हम सबमें से एक हैं। समलैंगिकता बायोलॉजिकल है। यह उनके जीवन जीने का तरीका है। 
वहीं यह सम्बंध हमारे देश के लिए कोई नए नहीं हैं। यह हमारे इतिहास का हिस्सा हैं। जरासंध के दो सेनापति हंस और दिंभक भी इसी प्रकार के सम्बंध रखते थे। कथा के मुताबिक- जरासंध के दो सेना पति हंस और दिंभक थे। सैनिकों ने खबर फैलाई की हंस मारा गया है। यह सुनकर दिंभग ने समुद्र में कूद कर आत्महत्या कर ली। दोनो सैनिकों की मौत ने जरासंध को हताश किया। बताया गया कि दिंभग ने अंतिम समय मे कहा बिना हंस के मेरे जीवन का कोई औचित्य नहीं है।
वहीं अब जब मोहन भागवत ने समलैंगिक संबंधों को लेकर यह बयान दिया तो लोग इसे हमदर्दी के भाव से जोड़कर देख रहे हैं। लोग का कहना है कि वह यह भाव समझते हैं। उनका यह बयान मानवता और हमदर्दी की यओर इशारा कर रहा है। वह उनसे घृणा न करें उन्हें समाज का हिस्सा समझें। क्योंकि समाज मे सम्मान के साथ रहने का हक सभी का है।

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