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जीवन में दुःख का कारण क्या है

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आध्यात्मिक: ईश्वर ने सभी को समान भाव से जन्म दिया लेकिन ईश्वर की रचना ने संसार को जाति, धर्म पथ में विभाजित कर दिया। अब समाज में यह सब व्यक्ति के दुखों का कारण बन रहा है। कोई धर्म के लिए आपसी प्रेम भुलाकर लड़ रहा है तो कोई जाति के नाम पर ईश्वर की सबसे सुन्दर रचना का अपमान कर रहा है। आज जब ईश्वर मनुष्य को देखता होगा तो अफ़सोस करता होगा कि मैंने क्या गढ़ा है और क्यों गढ़ा है यह तो मेरे ही नियमों का उल्लंघन करने में जुटा है, यह कैसा मनुष्य है जो अपने विवेक का उपयोग न करके दिखावे की परिधि में फसता जा रहा है और अपने कृत्यों के कारण झेल रहे दुखों का जिम्मेदार मुझे ठहरा रहा है। 

लेकिन अब सवाल यह भी उठता है कि मनुष्य के दुख का आखिर कारण क्या है ? वास्तव में हमारे दुःख का कारण हमारी स्वीकृति है जो हमें कभी सुखी ही नहीं होने देती। हम सदैव यह चाहते हैं कि संसार में जो भी हो रहा है वह सब हमारे अनुकूल हो, बस हमें किसी के अनुकूल न होना पड़े। हमारा परिस्थितियों के अनुकूल न होना हमारे दुःख का कारण बनता है। 

गीता में कृष्ण कहते हैं जो व्यक्ति मोह का त्याग करता है, स्वयं को बंधनों से मुक्त रखता  धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ता है, लोगों की किसी से तुलना नहीं करता है और सभी के ज्ञान का सम्मान करता है वह जीवन में सुखी रहता है। क्योंकि ऐसे लोग वातवरण के अनुकूल होते हैं यह परिस्थितियों से लड़ते नहीं हैं अपितु परिस्थितियों को स्वीकार कर आनंदित होते रहते हैं।

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