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जीवन से अधिक जरुरी है मृत्यु को जानना

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मृत्यु सत्य है यह तो सभी जानते हैं। लेकिन मृत्यु है क्या यह कोई नहीं जनता। वह मृत्यु के भय से भयभीत होकर जन्म को जीना छोड़ देता है। आजकल हम अपने आसपास के लोगों को देखते हैं सभी दीर्घायु जीवन की कल्पना करते हैं। ईश्वर के सामने अपने लम्बे जीवन की मांग की अभिलाषा लिए नतमस्तक होते हैं और जो जीवन मिला है उसके वास्तविक मूल को नकार देते है। 

वास्तव में मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे प्रयास से भी नहीं जीता जा सकता क्योंकि मनुष्य जिसका जन्म हुआ है या जो इस धरा पर मौजूद है उसका अस्तित्व तभी तक है जब तक इस धरा को उस व्यक्ति की आश्यकता है। लोगों को लगता है कि सांस का चलना जन्म है और सांस का रुकना मृत्यु लेकिन वास्तव में मृत्यु क्या है यह कोई समझना ही नहीं चाहता। तो आइये आज इस लेख में हम जानते हैं मृत्यु क्या है –

क्या है मृत्यु:

मृत्यु वास्तव में जीवन का अस्तित्व है। बिना मृत्यु के आप एक भी क्षण जीवन का अनुभव नहीं कर सकते। आप जितनी बार जीवन जीने के लिए हवा अंदर खींचते हैं उतनी बार ही आप मृत्यु के लिए हवा बाहर छोड़ते हैं। यानी मृत्यु जीवन के साथ चलने वाली सबसे सुंदर क्रिया है। बिना मृत्यु के जीवन संभव नहीं है और दोनों का अस्तित्व एक दूसरे के साथ है। यदि दोनों में से किसी का भी पलड़ा भारी हुआ तो यह आपके अस्तित्व को प्रभावित करेगा। 

मृत्यु के बिना जीवन नहीं और जीवन के बिना मृत्यु। लेकिन अब सवाल यह भी उठता है जब मृत्यु और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं तो व्यक्ति सिर्फ मृत्यु से भयभीत क्यों है। असल में व्यक्ति मृत्यु से भयभीत नहीं होता। व्यक्ति उन स्मृतियों से भयभीत होता है जो वह जीवन में एकत्रित करता है। उसे लगता है जन्म को स्वीकार करने मैंने जो स्मृतियाँ एकत्रित की हैं उनको मैं मृत्यु को स्वीकार करते ही त्याग दूंगा। 

मनुष्य त्याग के भाव से भयभीत रहता है और उसे यह लगता है कि वह मृत्यु से भयभीत है। असल में मृत्यु से तो कोई भी भयभीत नहीं है। क्योंकि यह क्रिया जन्म के साथ चल रही है और जो जीवन के समरूप चलता है उससे भय नहीं लगता अपितु उसकी हमें स्वीकृति नहीं होती और हम अपने लोभ के वसीभूत बंधे मृत्यु के नाम पर विलाप करते रहते है। 

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