डेस्क रिपोर्ट :
लोग लेखक मनोज मुंतशिर के लिखे संवादों पर सवाल उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ मनोज मुंतशिर अलग अलग मीडिया चैनलों पर अपनी बात रख रहे हैं.मनोज मुंतशिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सीता के डायलॉग बता रहे हैं और कह रहे हैं कि “क्या ये डायलॉग फ़िल्म में नहीं हैं? कुछ लोग हैं जो फ़िल्म को आज से नहीं डे-वन से टारगेट कर रहे हैं. हमने कभी फ़िल्म को शुद्धता के पैमाने पर सेल नहीं किया. हमने आज तक ये नहीं बोला कि हम ऐसी फ़िल्म बना रहे हैं जो प्रामाणिक तौर पर उसी भाषा का प्रयोग कर रही है जो भाषा वाल्मिकी ने लिखी थी. अगर मुझे शुद्धता पर जाना था तो फिर मैं अपनी ग़लती मानता हूं क्योंकि तब इसे संस्कृत में लिखना था और तब मैं लिखता ही नहीं क्योंकि मुझे संस्कृत लिखनी नहीं आती.”फ़िल्म की पहले दिन 140 करोड़ रुपये की कमाई के बाद मनोज मुंतशिर ने एक ट्वीट में कहा है, ” आभार मेरे देश! जय श्री राम!”समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, प्रोडक्शन कंपनी टी-सिरीज ने बताया कि आदिपुरुष हिंदी में बनी किसी फ़िल्म के मुकाबले देश भर में पहले दिन सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म’ बन गई है.
मनोज मुंतशिर शुक्ला का का जन्म गौरीगंज, अमेठी, उत्तर प्रदेश में 27 फरवरी 1976 को हुआ उनके पिता किसान और मां शिक्षिका थी. उनकी पत्नी नीलम मुंतशिर भी लेखिका है. उनका एक बेटा है.उनका असल नाम मनोज शुक्ला है और मुंतशिर उनका पेन नाम है. छोटी उम्र से ही उन्हें कविताएं लिखने का शौक था.मनोज ने एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए बताया था कि स्कूल के दौरान वो अपने लिए तख़ल्लुस ढूंढ रहे थे. जब एक शाम वो अमेठी की गलियों से गुज़र रहे थे तब उन्होंने टी स्टाल के रेडियो में गाना सुना “मुंतशिर हम है तो रुक्सार पर शबनम क्यों है, आईने टूटते रहते है तुम्हे गम क्यों है”.मनोज के मुताबिक उन्हें मुंतशिर नाम से प्यार हो गया और वो उनका पेन नाम बन गया.बचपन से ही कविताएं लिखने वाले मनोज को उनके दोस्त मुशायरे में ले गए और वहाँ उन्होंने अपनी कविताएं पढ़ी.मनोज मुंतशिर के मुताबिक जब वो माध्यमिक कक्षा में थे तब मिर्ज़ा गालिब की किताब “दीवान-ए -गालिब” के संपर्क में आये. उन्हें उर्दू नहीं आती थी इसलिए उन्हें किताब पढ़ने में दिक्कत आ रही थी.
कविताएं लिखने के लिए उन्हें उर्दू सीखनी थी इसलिए वो घर के पास मस्ज़िद से दो रूपए की उर्दू किताब लाये.मनोज मुंतशिर के मुताबिक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद वो 1999 में मुंबई आ गए.मनोज बताते हैं कि तब उनके जेब में सिर्फ 700 रूपए थे. उन्होंने जब अपने पिता से मुंबई जाने के लिए 300 रुपए मांगे थे तब उनके पिता ने उन्हें 700 रुपए दिए. वापसी के किराए के साथ.मुंबई आने से पहले वो 1997 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में आल इंडिया रेडियो में 135 रुपए वेतन में काम किया करते थे.मुंबई आने के बाद उन्होंने अनूप जलोटा के लिए भजन लिखे जिसके लिए उन्हें 3000 रुपए मिले.2005 में उनका काम देखकर स्टार चैनल ने उन्हें कौन बनेगा करोड़पति के लिए गाना लिखने को कहा और इससे उन्होंने टीवी में प्रवेश किया.फ़िल्मो में उन्होंने 2005 में एक फ़िल्म के चार गाने लिखे.
उन्हें ख्याति मिली 2014 में जब उन्होंने श्रेया घोषाल के ग़ज़ल एल्बम हमनशीन के गाने लिखे.फ़िल्म आदिपुरुष के डायलॉग को लेकर मनोज मुंतशिर लोगों के निशाने पर हैं.2014 में आई फ़िल्म एक विलेन का गीत “गलियां” ने उन्हें नई सफलता से रूबरू करवाया. उन्हें गलियां गीत के लिए कई अवॉर्ड भी मिले.बतौर गीतकार उन्होंने कई बड़ी फ़िल्मों के लिए गाने लिखे, जिनमें बाहुबली (हिंदी), पीके, बेबी, कपूर एंड संस, रुस्तम, एमएस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी, काबिल, , अय्यारी, कबीर सिंह, राम सेतु, मिशन मजनू और विक्रम वेदा शामिल हैं.मनोज मुंतशिर के पॉपुलर गानों में शामिल है कबीर सिंह फ़िल्म का “कैसे हुआ”, केसरी फ़िल्म का “तेरी मिट्टी”, हाफ गर्लफ्रेंड का “फिर भी तुमको चाहूंगा”, रुस्तम फ़िल्म का “तेरे संग यारा”बतौर लेखक उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बाहुबली पार्ट 1 के हिंदी पटकथा और डायलॉग लिख कर की.2019 में उनकी पहली पुस्तक ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ प्रकाशित हुई. 2022 में उन्हें साइना फ़िल्म के गाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.