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मोबाइल ने बर्बाद किया सबको:- मोबाइल मा घुस जाओ पता नही का देखे ख़ातिन इतना व्याकुलान हैं

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लाइफस्टाइल– गांव में रहना यानी सुकून को स्पर्श करने जैसा है। सुबह की ताजा हवा, जलेबी का नाश्ता साथ में समोसे का होना कम्पलसरी। देरी से उठने पर डांट रात को समय पर सोना, बिना स्नान के किचन में प्रवेश वर्जित, मोबाइल चलाने पर बुजुर्गों का कहना घुस जाओ वहीमा पता नही का देखे ख़ातिन इतना व्याकुलान हैं कि पूजा पाठ करे की फुर्सत नहीं बा और फिर सबका साथ मे बैठ कर घण्टो किसी विषय पर चर्चा करना।

सुनकर थोड़ा ताज्जुब लगा न। लेकिन यह सच है कि गांव में आज भी यह परंपरा जीवित है। बुजुर्ग मोबाइल को कलह कहते हैं। बुजुर्गों का कहना है यह तकनीकी लोगों को मंद बुद्धि बना रही है। लोग इसके साथ इतना हिल मिल रहे हैं कि अपने दैनिक जीवन को बर्बाद करने पर तूल गए हैं। उनके खाने पीने उठने बैठने का लहजा बिल्कुल बदल गया है। अब घर के बच्चे घर के लोगों से अधिक मोबाइल को वक्त दे रहे हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज हम साथ होकर भी अकेले होते जा रहे हैं।

मोबाइल को लेकर क्या कहते हैं बुजुर्ग- 

कल जब टीम के कुछ लोग उत्तरप्रदेश के लखनऊ शहर के पास स्थित गांव हमीरपुर और आप पास के बुजुर्गों से बातचीत करने लगे। तो खेत के किनारे बैठे श्याम प्रसाद कहते हैं – आज का जीवन कोई जीवन है लड़के 10 बजे तक बिस्तर नहीं छोड़ते हैं। रात में जागरण करके मोबाइल चलाते हैं। न सोने का कोई निर्धारित समय है न सुबह उठने का। न कसरत करेंगे न ध्यान। ये मोबाइल नहीं हुआ नए लड़के के जीवन के लिए काल हो गया है।
वहीं पास बैठे एक बुजुर्ग कहते हैं- मोबाइल ने पढाई का सत्यानाश कर दिया है। यह वास्तव में चिंता की बात है। हम घानी भर पैसा फूंक कर बच्चों को पढ़ने के लिए प्राइवेट स्कूल भेजते हैं। लेकिन बच्चे किताबों से ज्यादा मोबाइल में लगे रहते हैं। बड़ी तकलीफ होती है यह देखकर कि बच्चों का काफी-किताबों से अब लगाव ही नहीं बचा है। 
वहीं जब हम उनको टोकते हैं कि भईया तनिक किताब उठा लो तो जवाब मिलता है फोन से पढ़ रहे हैं। अब आप ही बताओ क्या फोन से वास्तव में बेहतर पढाई हो सकती है। इतना तो हम भी जानते हैं कि ज्ञान के लिए किताब से बेहतर कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता है।
 

मोबाइल गेम पर क्या बोले बुजुर्ग-

हमीरपुर निवासी राम चन्द्र कहते हैं- आज सभी लोग अपने मोबाइल पर ही अपना मनोरंजन करते हैं। गांव में तब भी थोड़ा खेल कूद जिंदा है। क्योंकि हम लोग उनको टोकते रहते हैं। लेकिन शहरों में यह पूर्ण रूप से समाप्त हो गया है। हम अगर अपने गांव की बात करें तो बच्चे जो दिन भर गेम, फेसबुक और पता नहीं क्या-क्या बातें करते हैं। 
अब उनकी बातों में गम्भीरता नहीं दिखती। न वह अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग हैं। तकनीकी आई कि बच्चों की सुविधाएं बढ़ेगी। लेकिन इन लोगों के इसका उपयोग सकारात्मक नहीं किया। यह आज बच्चों का समय बर्बाद कर उनको रोगी बनाने का माध्यम बन गई है।
आज के नव युवा खेल कूद, कसरत से दूर होते जा रहे हैं। आंख खुलती है तो वह बिस्तर बाद में छोड़ते हैं पहले अपने मोबाइल को चेक कर लेते हैं रात भर में कुछ बदल तो नही गया। शराब सी लत लगी है उनको मोबाइल की। अगर उनको मोबाइल न दिया जाए तो वह व्याकुल हो जाते हैं और कई बार अपने आप को चोट पहुंचाने पर उतर जाते हैं।
अगर पूरे दिन गांव में देखें तो आपको गिने चुने बच्चे खेल से जुड़े दिखेंगे। खेलते समय भी वह कई बार मोबाइल का उपयोग कर लेंगे। लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे देखेंगे जो मोबाइल गेम में अपना समय बर्बाद करते हैं। कई बच्चों को हमने देखा है जो मोबाइल गेम खेलते हुए बातें भी करते हैं। अपने शरीर से कई तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। उनका यह व्यवहार ऐसा प्रतीत होता है कि मानो मोबाइल गेम ने उनको मंदबुद्धि बना दिया है।

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