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सबसे ज्यादा प्रदूषण बढ़ा रही सड़कों की धूल, पर इल्जाम….

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सबसे ज्यादा प्रदूषण बढ़ा रही सड़कों की धूल, पर इल्जाम….

 

 

दिल्ली-एनसीआर में
प्रदूषण बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण क्या है. धुआं या धूल?

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (आइआइटी), कानपुर की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदूषण सड़कों पर उड़ने वाली धूल से हो रहा है. वाहनों से निकलने वाले धुएं का नंबर तो उसके बाद आता है.

पीएम10 (पीएम यानि पर्टिक्युलेट मैटर, ये हवा में वो पार्टिकल होते हैं जिस वजह से प्रदूषण फैलता है) में सबसे ज्यादा 56 फीसदी योगदान सड़क की धूल का है. जबकि पीएम 2.5 में इसका हिस्सा 38 फीसदी है. इन दिनों पूरा दिल्ली-एनसीआर धुएं और धुंध में लिपटा हुआ है.

हमें लगता है कि इसकी वजह दिवाली पर चलाए गए पटाखे और वाहन हैं, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. दरअसल इसकी बड़ी वजह नगर निगमों और डेवलपमेंट प्राधिकरणों की कामचोरी है, जिसकी वजह से सड़कों पर धूल जमा है.प्रदूषण के लिए जिम्‍मेदार सबसे छोटे कण पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) और 10 माइक्रोग्राम से कम वाले पॉल्यूटेड कण यानि पीएम 10 का लेवल बढ़ रहा है. इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. जो डस्ट, कंस्‍ट्रक्‍शन कार्य और कूड़ा व पुआल जलाने से ज्यादा बढ़ती है.

ये कण आसानी से नाक और मुंह के जरिए बॉडी के अंदर तक पहुंच कर लोगों को बीमार बना सकते हैं. इनको सामान्‍य मॉस्‍क से भी नहीं रोका जा सकता. ऐसे में क्या दिल्ली में वाहनों से पैदा होने वाले प्रदूषण पर काबू पाने से ज्यादा जरूरी सड़क पर इकट्ठी धूल हटाना नहीं है?

खुद निर्णय लीजिए कि ऑड-ईवन जरूरी है या फिर सड़कों से धूल हटाना? जनता को परेशान करना चाहिए या फिर उन अधिकारियों को दंडित करना चाहिए, जिनकी नाकामियों की वजह से सड़कों पर धूल जमा है.

न्यूज18 डॉटकॉम ने दिल्ली और आसपास का मुआयना किया तो पाया कि ज्यादातर सड़कों पर धूल जमा है. कुछ सड़कों पर तो 25 फीसदी हिस्से में धूल ही है, जो वाहनों की आवाजाही या फिर हवा चलने पर उड़ने लगती है. जब इसमें धुआं मिलता है तो यह धूल और खतरनाक हो जाती है.

प्रदूषण से आम जन जीवन पर पड़ने वाले दुष्‍प्रभाव को लेकर कई सर्वे कर चुके गुड़गांव के पुल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. हिमांशु गर्ग कहते हैं कि दुनिया के बड़े शहरों में सिविक चैलेंजेज (नागरिक चुनौतियां) एक सी हैं. हमारे और उनमें अंतर यह है हमने प्रदूषण से संबंधित चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया.

मास्‍क लगाना ही इसका समाधान नहीं है. इसके लिए एक शॉर्ट टर्म और एक लांग टर्म प्‍लानिंग होनी चाहिए, वरना प्रदूषण की भयावहता के कारण इन शहरों से लोगों का पलायन होने लगेगा.

शॉर्ट टर्म समाधान

कंस्‍ट्रक्‍शन पर मॉनिटरिंग बढ़ानी होगी. हो सके तो कुछ दिन के लिए इस पर रोक लगाई जाए.

सड़कों पर रोजना पानी छि़ड़का जाए, जिससे धूल के कण नीचे बैठे रहें.

पुआल और कूड़ा जलाने पर सख्‍ती से रोक लगे, संबंधित एजेंसियां मिलकर निगरानी करें.

वाहन शेयरिंग को बढ़ावा दिया जाए.

लांग टर्म समाधान

पौधारोपण को बढ़ावा दें, फॉरेस्‍ट कवर एरिया बढ़ेगा तब राहत मिलेगी.

इको फ्रेंडली वाहनों को बढ़ावा दिया जाए.

सार्वजनिक वाहनों को बढ़ावा मिले.

निर्माण के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल के नियमों का सख्‍ती से पालन हो.

क्या कदम उठाए गए

-प्रिवेंशन और कंट्रोल अथॉरिटी (EPCA)ने प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली के सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र आनंद विहार से बस अड्डा हटाने को कहा है. एनसीआर के उद्योगों में पेट कोक और फरनेस ऑयल पर रोक लगा दी है. बदरपुर स्थित थर्मल पावर प्लांट बंद कर दिया गया है. इसे 15 मार्च 2018 तक बंद रखा जाएगा. 20 जुलाई 2018 को यह प्लांट स्थायी रूप से बंद हो सकता है. डीजल से चलने वाले जनरेटर सेट भी बंद कर दिये गए हैं.

लेकिन धूल को लेकर कोई सख्ती नहीं है. न सिर्फ दिल्ली बल्कि गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद और नोएडा की सड़कों पर धूल से बुरा हाल है. कभी सफाईकर्मी इसे साफ नहीं करते, जिसकी वजह से यह प्रदूषण का बड़ा कारण बन रही है.

कितना होना चाहिए पीएम 10 और पीएम 2.5

पीएम 10 का सामान्‍य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्‍यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए. जबकि दिल्ली में यह कुछ जगहों पर 1600 तक भी पहुंच चुका है. पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है लेकिन यह यहां 300 से 500 तक पहुंच जाता है.

 

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