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अगस्त क्रांति यानी 9 अगस्त भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अगस्त क्रांति के नाम से मशहूर

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बोकारो से शेखर की रिपोर्ट

भारत छोड़ो आंदोलन का करीब तीन-चार साल का दौर अत्यंत महत्वपूर्ण होने के साथ पेचीदा भी था। यह आंदोलन देशव्यापी था जिसमें बड़े पैमाने पर भारत की जनता के इस धारी की और अभूतपूर्व साहस और सहनशीलता को परिचय दिया 9 अगस्त का दिन हम भारतवासियों के जीवन की महान घटना है और यह हमेशा बनी रहेगी 15 अगस्त को धूमधाम से मनाते हैं क्योंकि उस दिन ब्रिटिश वायसराय माउंटेन ने भारत के प्रधानमंत्री के साथ हाथ मिलाया था और क्षतिग्रस्त आजादी हमारे देश को दी थी वही 9 अगस्त देश की जनता की अपेक्षा की अभिव्यक्ति थी जिसमें उसने यह ठान लिया था कि हमें आजादी चाहिए और हम आजादी लेकर रहेंगे राम मनोहर लोहिया ने भारत छोड़ो आंदोलन की 25वीं वर्षगांठ पर लिखा था लोहिया ने टाटसकी के हवाले से लिखा है कि रूस की क्रांति में वहां की सिर्फ 1% जनता ने हिस्सा लिया था

जबकि भारत की अगस्त क्रांति में देश के 20% लोगों ने हिस्सेदारी की थी 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित हुआ और 9 अगस्त की रात को कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व सक्रिय था लेकिन उसे भूमिगत रहकर काम करना पड़ रहा था उनका हौसला अफजाई करने और आंदोलन का चरित्र और तरीका स्पष्ट करने वाले आजादी के सैनिक के नाम दो लंबे पत्र अज्ञात स्थानों से लिखे भारत छोड़ो आंदोलन के महत्व का एक पक्ष यह भी है आंदोलन के दौरान जनता खुद अपनी नेता थी ध्यान देने की बात थी कि गांधी ने आंदोलन को समावेशी बनाने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में दिए अपने भाषण में समाज के सभी ताकतों की संबोधित किया था जनता पत्रकार नरेश सरकारी अमला सैनिक विद्यार्थी आदि यहां तक कि उन्हें अंग्रेज रिपोर्ट देशों और मित्र राष्ट्र को भी अपने आप भाषा के जरिए संबोधित किया था

इस आंदोलन के दबाव में भारत के अधीन नेता वादी मध्यम वर्ग से लेकर संबंधी नर्सों तक लग रहा था कि अंग्रेज को अब भारत छोड़ना होगा इसलिए अपने वर्ग समर्थ को बचाने और मजबूत करने की फिक्र उन्हें लगी प्रशासन का लो सिकंदरा और उससे बचने वाली भाषा तो अंग्रेज की बनी रही थी रही साथ ही विकास का मॉडल भी वही रहा। अपने जमाने में राम मनोहर लोहिया ने आजाद भारत के शासक वर्ग और सांसद तंत्र की सत्ता और विस्तृत आलोचना की थी उन्होंने उसे अंग्रेज राज्य का विस्तार बनाया बताया था शायद उन्हें लगा होगा कि उनकी आलोचना से राजनेताओं और शासक वर्ग का चरित्र बदलेगा शासन तंत्र में परिवर्तन आएगा और भारत की अमरुद क्रांति आगे बढ़ेगी लेकिन इतने सालों बाद भी उनके इस कथन का जरा सा भी असर हमारे शासन वर्ग में नहीं हुआ आज जब हमारा अगस्त क्रांति की याद में सालगिरह मना रहे हैं तो सोचे कि हम क्या हम जनता पर प्रश्न मजबूत करना चाहते हैं या स्वतंत्रता आंदोलन के परिणाम प्रार्थी को प्रसन्न तो और विभूतियों का उत्सव मना कर उसे सार तत्व को खत्म कर देना चाहते हैं

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