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राजनाथ सिंह – अगर अटल जी राम थे तो टंडन जी थे लखन

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लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में आज प्रदेश के पूर्व मंत्री और मध्य प्रदेश, बिहार के राज्यपाल रहे स्वर्गीय लालजी टंडन (Lalji Tandon) की प्रतिमा का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया. कार्यक्रम में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ डिप्टी सीएम केशव मौर्य, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, आशुतोष टंडन के साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने शिरकत की. इस दौरान लखनऊ की मेयर मेयर संयुक्ता भाटिया और लखनऊ की कई गणमान्य हस्तियां भी कार्यक्रम में मौजूद रहे. हजरतगंज में अटल चौक पर मल्टी लेवल पार्किंग के सामने स्वर्गीय लालजी टंडन की ये प्रतिमा का अनावरण किया गया. ये प्रतिमा कांस्य धातु की बनी हुई है और साढ़ें 12 फीट ऊंची है.

इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस उत्कृष्ट कार्य के लिए नगर निगम को बधाई. मैं इस प्रतिमा को जब देख रहा था, मेरे मन में एक ही लाइन आई है. धोती-कुर्ता पहने एक ज़िंदादिल इंसान, राजनीति है जिसकी पहचान, ऐसे थे लालजी टंडन, लखनऊ के शान.

लालजी टंडन की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

राजनाथ ने कहा कि दो व्यक्ति इस शहर में ऐसे थे, जो लखनऊ को जीते थे. एक थे योगेश प्रवीण और दूसरे लालजी टंडन. यूपी में भाजपा को सत्ता तक पहचाने में उनकी बड़ी भूमिका रही. मैं जब विधायक था, तबसे उनकी राजनीति को बेहद क़रीब से देखा है. कल्याण सिंह हों, कलराज मिश्रा हों या मैं, जब किसी को महत्वपूर्ण सुझाव लेना होता था तो लोग उनके पास जाते थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता था. व्यक्ति का पद और क़द चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो? उसे ज़मीन से कभी नहीं कटना चाहिए. हर दल के व्यक्ति के साथ उनके सम्बन्ध बहुत अच्छे थे. चाहे किसी भी जाति या मजहब हो, उससे उनके सम्बंध प्रगाढ़ थे. मायावती जी ने भी कहा था टंडन जी मेरे भाई हैं.

राजनाथ ने कहा कि टंडन जी से ये सीखना ज़रूरी है कि राजनीति में मतभेद तो हो सकते है लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए. टंडन जी ने हमेशा विकास की राजनीति की. इसलिए लोग उनको विकास पुरुष कहते थे. लखनऊ में उन्होंने कितना विकास किया वो बताने की ज़रूरत नहीं है. अटल जी और लाल जी टंडन के रिश्ते को हम ऐसे समझ सकते हैं कि अगर अटल जी राम थे तो टंडन जी लखन थे. उनके अंदर अपनापन का भाव था.

अगर कोई आपके बीच नहीं होता है तो उसकी स्मृतियां रहती हैं. उनके बेटे भी वही विभाग देख रहे हैं, जो कभी लालजी टंडन भी देखते थे. कई बार ये मानना मुश्किल हो जाता है कि वो अब हमारे बीच नहीं रहे. लेकिन आज उनकी प्रतिमा देखकर मानना पड़ेगा. आज मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.

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