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इसरो 12 अगस्त की सुबह पौने छह बजे नया इतिहास रचने से चूका, मिशन समय से 10 सेकेंड पहले ही खराब हो गया

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन – इसरो (ISRO) 12 अगस्त की सुबह पौने छह बजे नया इतिहास रचने से चूक गया. अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट (EOS-3) को GSLV-F10 रॉकेट ने उड़ान तो भरी लेकिन मिशन समय से 10 सेकेंड पहले ही खराब हो गया. मिशन कंट्रोल सेंटर को रॉकेट के तीसरे स्टेज में लगे क्रायोजेनिक इंजन से 18.29 मिनट पर सिग्नल और आंकड़ें मिलने बंद हो गए थे. इसके बाद मिशन कंट्रोल सेंटर में वैज्ञानिकों के चेहरों पर तनाव की लकीरें दिखने लगीं. थोड़ी देर तक वैज्ञानिक आंकड़ों के मिलने और अधिक जानकारी का इंतजार करते रहे.

फिर मिशन डायरेक्टर ने जाकर सेंटर में बैठे इसरो चीफ डॉ. के. सिवन को सारी जानकारी दी. इसके बाद इसरो प्रमुख ने कहा कि क्रायोजेनिक इंजन में तकनीकी खामी पता चली है. जिसकी वजह से यह मिशन पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया. इसके बाद इसरो ने घोषणा की कि मिशन आंशिक रूप से विफल रहा है. तत्काल इसरो द्वारा चलाया जा रहा लाइव प्रसारण बंद कर दिया गया. अगर यह मिशन कामयाब होता तो सुबह करीब साढ़े दस बजे से यह सैटेलाइट भारत की तस्वीरें लेना शुरु कर देता. इस लॉन्च के साथ इसरो ने पहली बार तीन काम किए थे. पहला- सुबह पौने छह बजे सैटेलाइट लॉन्च किया. दूसरा- जियो ऑर्बिट में अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को स्थापित करना था. तीसरा- ओजाइव पेलोड फेयरिंग यानी बड़े उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजना.

EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एफ 10 (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-F10) से लॉन्च किया गया. यह रॉकेट 52 मीटर ऊंचा और 414.75 टन वजनी था. इसमें तीन स्टेज थे. यह 2500 किलोग्राम तक के सैटेलाइट को जियोट्रांसफर ऑर्बिट तक पहुंचाने की क्षमता रखता है. EOS-3 सैटेलाइट का वजन 2268 किलोग्राम है. EOS-3 सैटेलाइट अब तक का भारत का सबसे भारी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट है. जियोट्रांसफर ऑर्बिट में जाने के बाद सैटेलाइट अपने प्रोपेलेंट की बदौलत खुद अपनी तय कक्षा में स्थापित होता लेकिन वह पहुंच ही नहीं पाया. 

पहली बार सुबह का समय चुनने की वजह
इसरो ने पहली बार सुबह 5:45 बजे अपना कोई सैटेलाइट लॉन्च किया. इससे पहले कभी भी इस समय पर कोई अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट नहीं छोड़ा गया था. इसके पीछे कोई शुभ समय नहीं बल्कि वैज्ञानिक वजह थी. सुबह लॉन्चिंग से मौसम के साफ रहने का फायदा तो मिला लेकिन बीच रास्ते में क्रायोजेनिक इंजन ने धोखा दे दिया. दूसरा सूरज की रोशनी में अंतरिक्ष में उड़ रहे अपने उपग्रह पर नजर रखने में आसानी होती.  

अंतरिक्ष में भारत का सीसीटीवी 
इसरो के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इसरो ने अभी तक जियो ऑर्बिट यानी धरती से 36 हजार किलोमीटर दूर की स्थैतिक कक्षा में किसी रिमोट सेंसिंग यानी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को नहीं तैनात किया था. यह पहली बार होता जब EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) इतनी दूरी पर भारत की तरफ अपनी नजरें गड़ाकर निगरानी करता. आप यूं भी कह सकते हैं कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में सीसीटीवी लगा रहा था. यह सैटेलाइट पूरे दिन भारत की तस्वीरें लेता रहता. हर आधे घंटे में यह पूरे देश की तस्वीर लेता रहता. जिसे जरूरत के हिसाब से इसरो के वैज्ञानिक या देश के अन्य मंत्रालय या विभाग प्रयोग कर सकते थे. 

ओजाइव पेलोड फेयरिंग की नई शुरुआत
पहली बार 4 मीटर व्यास वाले ओजाइव (Ogive) आकार का सैटेलाइट को जीएसएलवी की नाक में रखा गया था. यानी EOS-3 सैटेलाइट OPLF कैटेगरी में आता है. इसका मतलब ये है कि सैटेलाइट 4 मीटर व्यास के मेहराब जैसा दिखाई देगा. यानी अब तक इस तरह का लंबा सैटेलाइट भारत की तरफ से अंतरिक्ष में स्थापित नहीं किया गया था. 

एक से दो दिन लगेंगे कुछ सुधार करने में
EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) सैटेलाइट सुबह 5.43 बजे लॉन्च होने के बाद करीब पांच घंटे बाद धरती के जियो-ऑर्बिट में पहुंच जाता. करीब 10:30 बजे से यह देश की तस्वीरें लेना शुरु कर देता. हालांकि अगले एक-दो दिनों तक इसके ऑर्बिट में इसकी जगह को सेट करने में लग जाते. इस दौरान साइंटिस्ट कोर्स करेक्शन और इसमें लगे कैमरे के सेंसर्स को सेट करने में बिताते. ताकि इसके 50 मीटर रेजोल्यूशन वाले ताकतवर कैमरे से सटीक तस्वीरें और डेटा हासिल किए जा सकें.

अंतरिक्ष में बैठकर क्या करता EOS-3 सैटेलाइट
यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं और मौसम संबंधी रियल टाइम जानकारी देता. यह तस्वीरें रियल टाइम में इसरो के केंद्रों को प्राप्त होंगी. जिनका उपयोग जलीय स्रोतों, फसलों, जंगलों, सड़कों-बांधों-रेलवे के निर्माण में भी किया जा सकता था. इतना ही नहीं इस सैटेलाइट की ताकतवर आंखें हमारे जमीनी और जलीय सीमाओं की निगरानी भी करतीं. इसकी मदद से दुश्मन की हलचल का पता भी किया जा सकता था. 

EOS-3 के कैमरों की ताकत तो जानिए…
इस सैटेलाइट की खास बात थी इसके कैमरे. इस सैटेलाइट में तीन कैमरे लगे थे. पहला मल्टी स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (6 बैंड्स), दूसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (158 बैंड्स) और तीसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल शॉर्ट वेव-इंफ्रारेड (256 बैंड्स). पहले कैमरे का रेजोल्यूशन 42 मीटर, दूसरे का 318 मीटर और तीसरे का 191 मीटर. यानी इस आकृति की वस्तु इस कैमरे में आसानी से कैद हो जाएगी.  

विजिबल कैमरा यानी दिन में कान करने वाला कैमरा जो सामान्य तस्वीरें लेता. इसके अलावा इसमें इंफ्रारेड कैमरा भी था जो रात में तस्वीरें लेता. यानी भारत की सीमा पर किसी तरह की गतिविधि होती तो EOS-3 सैटेलाइट के कैमरों की नजर से बचती नहीं. ये किसी भी मौसम में तस्वीरें लेने के लिए सक्षम था. इसके अलावा इस सैटेलाइट की मदद से आपदा प्रबंधन, अचानक हुई कोई घटना की निगरानी की जा सकती थी. साथ ही साथ कृषि, जंगल, मिनरेलॉजी, आपदा से पहले सूचना देना, क्लाउड प्रॉपर्टीज, बर्फ और ग्लेशियर समेत समुद्र की निगरानी करना भी इस सैटेलाइट का काम था.  

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