डेस्क। पिछले वर्ष अगस्त में जब तालिबान लड़ाके काबुल में घुसे तब अफगानिस्तान की शिक्षित‚ सक्षम और समर्थ माने जाने वाली लड़कियां देश–विदेश में रह रहे अपने परिचितों–रिश्तेदारों को एक संदेश भेज रही थीं कि–‘ बस हमको यहां से निकालो‚ नहीं तो तालिबानी हमें मार डालेंगे।’
अफगानिस्तान की शिक्षित और जागरूक महिलाओं–लड़कियों को इसका अंदेशा था कि दोहा में अमेरिकी प्रतिनिधियों और तालिबान के मध्य वार्ता में उनके हक और हिफाजत से जुड़े मुद्दे कोई नहीं उठाएगा।
इस कारण से वे अलग-अलग मंचों से तालिबान की राजनीतिक प्रक्रिया में वापसी की पहल के बीच अपनी सुरक्षा और शिक्षा के मुद्दे को बराबर उठा रही थीं। उधर‚ दोहा वार्ता के दौर में और काबुल पर काबिज हो जाने के शुरुआती दिनों में लड़कियों की शिक्षा और कामकाजी महिलाओं को लेकर तालिबान के अलग–अलग नेता कई प्रकार के लगातार बयान दे रहे थे।
कुछ तालिबान नेताओं का कहना था कि लड़कियों को पढ़ने का अधिकार है तो कुछ इसको मना करने में जुटे थे। कुछ नेता बोले वे पहले की तरह पढ़ सकती हैं‚ तो कुछ ने उनको हिजाब–बुरखा में दफ्तर में काम करने की दलील पेश की।
पिछले दो दशकों में मौजूदा चुनौतियों के बावजूद महिला उद्यमी‚ वकील‚ डॉक्टर‚ कलाकार‚ पत्रकारों की एक नई पीढ़ी तैयार होने को आतुर है पर कुछ को इसके लिए देश छोड़ना पड़ा है और कुछ अभी भी उसी स्थान पर उपस्थित हैं।
बता दें कि वर्तमान समय में अफगानिस्तान में अकेले महिला को यात्रा करने की मनाही है और अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से पूर्ण वापसी के ऐलान के साथ ही तालिबान ने बंदूक के बल पर सत्ता पाई।
बता दें कि मौजूदा वक्त में तालिबानी महिलाओं और पुरुषों की स्तिथि बहुत बिगड़ चुकी है।
विश्वविद्यालयों में क्लास में लड़कियों और लड़कों को अलग–अलग कतार में बताया जाता है और उनके बीच पर्दा है। वहीं कई जगहों पर लड़कियों के सेकेण्ड्री स्कूल में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब लड़कियों को केवल प्राथमिक शिक्षा लेने की ही इजाजत है। महिलाओं ने खतरा मोल लेते हुए पहले भी काबुल की सड़कों पर कई बार जुलूस निकाला पर तालिबान की सरकार तस से मस नहीं हुई। ऐसे में यह स्तिथि बिगड़ती ही जा रही है और आने वाला समय क्या कहानी कहेगा कोई नहीं जानता।
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