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LOKSABHA ELECTION 2024: नेताओं के लिए चुनावी गारंटी विश्वसनीयता का गोंद

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नेताओं के लिए चुनावी गारंटी विश्वसनीयता का गोंद

LOKSABHA ELECTION 2024: लोकसभा चुनाव की तरीख घोषित हो चुकी है। देश का चुनावी माहौल टाइट है। सत्तापक्ष और विपक्ष बड़े -बड़े वादों की झंडी लगाए हुए हैं। मोदी विकास के बलबूते तो विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी और पीडीए का दम भर रही है। राजनीतिक ताने-बाने के बीच एक सवाल जो सभी के जहन में उठ रहा है वह है गारंटी? गारंटी का दम आम चुनाव में कुछ ऐसा दिख रहा है की रैली चाहें मोदी की हो या विपक्ष के किसी बड़े नेता की रैली की शुरुआत और उसका अंत गारंटी के साथ ही होती है।

आज के चुनावी माहौल में गारंटी विश्वसनीयता का गोंद है जिसके बिना जनता मानों नेता की बात पर विश्वास ही नहीं करेगी या मोटा – मोटा कहें तो जनता को लालच देने का नया तरीका है। जिसमें यह विश्वास दिलाया जाता है की गारंटी का जिक्र करने वाला दल जनमत के हितार्थ में कुछ भी करने को तैयार है। उसकी सम्पूर्ण नीति जनकल्याणकारी हैं। उनकी गारंटी जनमत का भविष्य बदलेगी और उनकी सत्ता में जनता के हित में कार्य होगा। लेकिन फिर सवाल वही है गारंटी क्या चुनावी वादा है ?

गारंटी का विस्तार कर्नाटक के चुनाव से होता है। कर्नाटक में बीजेपी – कांग्रेस के चुनावी प्रचार में गारंटी में दम लगाकर दमदार हुंकार भरी। मोदी की गारंटी का जयघोष हुआ लेकिन कांग्रेस की गारंटी से जनता आकर्षित हो गई और कांग्रेस ने गारंटी के बलबूत कर्नाटक में सरकार बना ली। हालांकि गारंटी पांच वर्ष में कितनी पूरी होती हैं यह चुनाव के वक्त ही स्पष्ट होगा। लेकिन कर्नाटक के चुनाव ने देश के नेताओं को जनता से जुड़ने का नया तरीका जिसका नाम गारंटी है। गारंटी कहीं न कहीं जनता को गुमराह करने का तरीका है। जिसके माध्यम से नेता स्वयं पर जनता का विश्वास बढ़ाता है और वादों की बात न करने उनको यह बताता है की हम आपको गारंटी देते हैं आपके हितार्थ में और आपके विश्वास से हम आपके बदलाव की गाथा लिखेंगे।

क्या कहते हैं जानकार:

जानकारों का कहना है गारंटी राजनेताओं पर विश्वनीयता लाने के लिए तुरप का इक्का है। जनता अब जागरूक है। जनता को वादों में स्वार्थ की बू आती है। जनता को भ्रमित करने के लिए नेताओं ने स्वार्थ का तोड़ गारंटी के रूप में निकाला है। नेताओं को मालूम है वह जो काम वादों के बलबूते नहीं कर पाए वह काम वह गारंटी के बलबूते कर सकते हैं। हालांकि गारंटी के बलबूते नेताओं का चुनाव जीतना सम्भव नहीं है लेकिन नेता स्वयं को स्थापित करने में गारंटी का खूब उपयोग कर सकते हैं।

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