डेस्क। Pasmanda Muslims: Muslim politics को लेकर भाजपा का रुक अक्सर बाकियों से अलग ही दिखाई पड़ता है।
वहीं थोड़ी मजबूरी, थोड़ी जरूरत और ढेर सारे अनुभव की कसौटी पर भाजपा अब मुसलमानों के वंचित-दलित-पिछड़े वर्ग यानी पसमांदा समाज को अपने पाले में लाने की कोशिश में है।
इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 16 से 18 अक्टूबर के बीच पहला पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन करके भाजपा ने मुसलमानों के उपेक्षित वर्ग का भरोसा जीतने का कोशिश की है।
भाजपा की हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी समुदायों के ‘वंचित और दलित’ वर्गों तक पहुंचने के साथ ही स्नेह यात्रा निकालने का आग्रह भी किया था। तभी से ऐसा माना गया कि भाजपा की नजर अब मुसलमान समाज के आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से कमजोर वर्ग पर है।
वहीं भाजपा का हिंदुत्व पर जोर देखते हुए राजनीतिक फायदे-नुकसान का तत्काल आंकलन भी संभावित नहीं है, पर ऐसा लगता नहीं कि हार्डकोर हिंदू वोटरों की नाराजगी की कीमत पर भाजपा कोई राजनीतिक सौदा करेगी।
आपको बता दें पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने का कदम बहुत सोच समझकर और नफा-नुकसान के आंकलन के बाद उठाया गया है। वहीं बीते आठ सालों में छोटे-छोटे प्रयोगों की सफलता तथा परस्पर दूरी घटने के बाद भाजपा को ऐसा लग रहा है कि मुस्लिम समाज का उपेक्षित वर्ग उस पर भरोसा कर सकता है।
विशेषज्ञों की माने तो भाजपा जातिवाद-भेदभाव पर चोट करके 80 फीसदी पसमांदा वर्ग तक अपनी पहुंच बना सकती है। वहीं विरोध के बावजूद तीन तलाक को खत्म कर भाजपा मुस्लिम महिलाओं के बड़े वर्ग की सहानुभूति और वोट पाने में भी सफल रही है।
इसके अलावा आपको बता दें भाजपा की सरकार में पसमांदा मुसलमानों को बिना भेदभाव के सरकारी आवास, शौचालय के अलावा मुफ्त राशन एवं अन्य योजनाओं का लाभ मिला है।
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