डेस्क। राष्ट्रपति पद की ओर से एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने के पीछे शिवसेना की राजनीतिक मजबूरी बताई जा रही है। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने दावा किया कि वह अपने विधायकों के दबाव में नहीं हैं साथ ही इसमें कोई रहस्य की बात भी नहीं है कि शिवसेना, हाल ही में हुए विद्रोह के बाद से घायल होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। महाराष्ट्र की राजनीतिक कलह के बाद से ही उसकी ताकत में कमी आई है, जिसके कारण महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के नेतृत्व के सामने और कोई विकल्प नहीं बचा ।
सोमवार को, पार्टी के 18 शेष सांसदों में से 13 ने ठाकरे द्वारा उनके आवास पर बुलाई गई बैठक में भाग लिया और उनसे राष्ट्रपति पद के लिए NDA की ओर से उम्मीदवार मुर्मू का समर्थन करने और भाजपा और पार्टी के एकनाथ शिंदे गुट के साथ संभावित सुलह का दरवाजा खोलने का अनुरोध भी किया था।
साथ ही पिछले हफ्ते पार्टी सांसद राहुल शेवाले ने ठाकरे को पत्र लिखकर कहा कि शिवसेना को मुर्मू को समर्थन देना चाहिए। उन्होंने लिखा कि एक ऐसी पार्टी में जहां ठाकरे से शायद ही कभी सवाल किया जाता है, शिवसेना प्रमुख को सांसद का पत्र एक स्पष्ट संकेत था कि उनका प्रभाव पार्टी से भी घट रहा है और पार्टी के सदस्य अब खड़े होने और अपने मन की बात कहने से बिल्कुल नहीं डरते।
बीते दिनों विद्रोह के बाद, ठाकरे वैसे भी एक पतली राजनीतिक रेखा पर जा खड़े हुए हैं।
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