Home politics क्या बीजेपी के गले की फांस बन जाएंगे अखिलेश यादव

क्या बीजेपी के गले की फांस बन जाएंगे अखिलेश यादव

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देश– कहते हैं अगर राजनेता पढ़ा लिखा हो तो वह देश का विकास करता है। जब शिक्षत व्यक्ति उच्च पद पर होता है तो वह शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए आगे बढ़ता है। लेकिन देश की राजनीति में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि कोई नेता पढ़ लिखकर देश के हित हेतु सोचे। वैसे तो देश में कई राजनेता हैं जो काफी पढ़े लिखे हैं। उनके अंदाज की दुनिया कायल है। 

अगर बात उत्तरप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की करें तो यह राजनीति के नए खिलाड़ी हैं और प्रयोग करना मानों इनका पेशा बन गया है। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यह युवाओं के प्रिय नेता हैं। साल 2012 में जब चुनाव हुआ तो युवा नेतृत्व और युवा सोच से लोकप्रियता हासिल की। 
अखिलेश यादव का यह पैतरा काम किया। सामाजवादी पार्टी को बहुमत मिला। अखिलेश उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनें।यहां से मानों अखिलेश की जिंदगी बदल गई। लोकप्रियता मिली लेकिन परिवार में बैर हुआ। चाचा भतीजे का विवाद जगजाहिर हो गया। अखिलेश को बार-बार हार का मुह देखना पड़ा। 2017, 2019 और 2022 में समाजवादी पार्टी कक बीजेपी के सामने हारना पड़ा। हां ये सत्य है कि 2022 में समाजवादी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया और मजबूती के साथ उभरी।

2024 में क्या करेंगे अखिलेश-

साल 2024 के लोकसभा चुनाव पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। विपक्ष बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहता है। वहीं अब सब यह जानने की कोशिश में हैं कि क्या अखिलेश यादव विपक्ष के साथ मिलकर ताल ठोकेंगे। 
अखिलेश की रणनीति पर।ध्यान केंद्रित किया जाए तो वह मायावती के फिक्स वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद में जुटे हुए हैं। बताया जा रहा कि चुनाव से पूर्व अखिलेश यादव दलितों को साध कर अपना दांव खेल देंगे। इसकी पुष्टि तब हुई जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक जनसभा में कहा मायावती काशीराम के आदर्शों से भटक गई हैं। अब बसपा का सफाया हो गया है।
उन्होंने साल 1993 के चुनाव को याद किया और कहा आज स्थिति उसी दौर की तरह है। जब काशीराम और मुलायम मिले थे तो भाजपा की हार हुई थी। कल्याण सिंह ने इस्तीफा दिया था। भाजपा को यकीन था कि वह सत्ता में वापसी करेंगे। लेकिन मिले मुलायम काशीराम हवा में उड़ गए जय…..? की हार हुई।
वहीं अब अखिलेश यादव भी उसी मार्ग पर हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है कि अगर अखिलेश को दलित वोट बैंक का समर्थन मिलता है तो उत्तरप्रदेश में अखिलेश की पार्टी का दम दिखेगा और बीजेपी के लिए अखिलेश फांस से बन जायेंगे। 

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