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माउंटआबू का ये रहस्यमयी मंदिर, जहां मंदिर बनाने में लगे मजदूरों को मजदूरी में मिलता था सोना-चांदी

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दिलवाड़ा जैन मंदिर को राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है जो राज्य के हिल स्टेशन माउंटआबू में स्थित है। यह मंदिर 1000 साल पहले बना और यह किस प्रकार बना यह आज भी एक रहस्य है। दरअसल दिलावड़ा जैन मंदिर ऐसे वक्त में बना जब माउंटआबू बियावान जंगल थे। लोग आज भी हैरान होते है कि किस प्रकार इस जंगल में और पहाड़ी पर पत्थरों को लाया गया। अनिल कुमार ऐरन की ये रिपोर्ट इसी रहस्य से पर्दा उठा रहा है। मार्बल पत्थर पर तराशा खुलता और बंद होता सूरजमुखी का फूल तो इस मंदिर की नायाब नमूना भर है। करीब हजार साल पुराना ये मंदिर भारतीय कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है। मंदिर के कई रहस्य है जो अब भी रहस्य ही है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर देश के उन पांच मंदिरों में शुमार होता है, जिसके निर्माण को अब भी रहस्य माना जाता है। इस अजूबा मंदिर की यह सबसे पुरानी दास्तान है कि यह मंदिर सिर्फ 14 साल में किस प्रकार इतनी खुबसूरती के साथ रचा गया। राजस्थान का ताजमहल माने जाने वाले इस मंदिर को बनाने में 14 साल लगे थे, जिसमें 1500 कारीगरों ने काम किया था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये 1500 कारीगर कैसे आए और 14 साल लगातार इसी जगह पर रहे। इन मंदिरों की नक्काशी इंसानी कमाल है, यह यकीन करना यहां आकर मुश्किल होता है।
दूसरी रहस्यमय बात जो सामने आती है कि मंदिर पहाड़ी पर बना है। यह तब बना जब माउंटआबू बियावान जंगल था। ऐसे में हाथी और घोड़े किस प्रकार मार्बल पत्थर लेकर उपर चढ़े होंगे यह बात समझ से परे है। मार्बल पत्थर मकराना से लाए गए जो अजमेर के पास है और अजमेर की दूरी यहां से 500 किलोमीटर है। लिहाजा किस प्रकार घोड़े और हाथी यहां से मार्बल पत्थरों को लेकर पहाड़ पर चढ़े होंगे। यह भी एक रहस्य है। यहां बनी हाथियों और घोड़ों की अस्थिशाला उनके योगदान की गाथा बयां करती है। आबू रोड से माउंटआबू 28 किलोमीटर है। यह आधुनिक युग की दूरी है जब रास्ते को इंसान ने अपनी सुविधा के मुताबिक बनाया है। जाहिर सी बात है कि उस समय हाथियों और घोड़ों ने इससे ज्यादा दूरी मार्बल पत्थरों को पहुंचाने में की होगी।

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जो भी मजबूत दिलवाड़ा जैन मंदिर बना रहे थे उन्हें मजदूरी के रूप में सोना और चांदी दिया था। दरअसल जब मजदूर इन मार्बल को तराशने के दौरान तोड़ते थे तो जो बड़े टुकड़े बच जाते थे उसे तौला जाता था। उसकी जितनी तौल होती थी उसके बराबर चांदी उस अमुक मजदूर को दिया जाता था। उसके बाद जो मार्बल का पाउडर बच जाता था उसकी तौल होती थी और उस बराबर का सोना उस अमुक मजदूर को दिया जाता था। यह भी कहा जाता है कि 14 साल के बाद दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण में लगे हर मजदूर के पास करोड़ों से ज्यादा सोना और चांदी था यानी हर मजदूर करोड़पति हो चुका था।
दिलवाड़ा जैन मंदिर में मजदूरों को लंच के लिए दो घंटे का समय दिया जाता था। लेकिन मजदूरों ने सिर्फ आधे घंटे को ही लंच में इस्तेमाल किया बाकी समय यानी डेढ़ घंटा उन्होंने मंदिर निर्माण में लगाया। और दिलवाड़ा जैन मंदिर में लंच टेंपल इसका गवाह है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर को राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है। तीसरा पीतलहर मंदिर राजस्थान के भामाशाह ने बनवाया था। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसमें लगी करीब 4 हजार किलो की पंचधातु की भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस प्रतिमा में सैकड़ों किलो सोना भी इस्तेमाल हुआ है। दिलवाड़ा स्थित चैथा मंदिर भगवान पार्श्वनाथ का है। कहा जाता है कि इस तीन मंजिले मंदिर के निर्माण में यहां काम करने वाले मजदूरों ने भी आर्थिक मदद की थी, जिन्हें मजदूरी के तौर पर संगमरमर पर काम करने से निकले चूरे के बराबर तोल का सोना मिलता था। पांचवां मंदिर महावीर भगवान का है। छोटा होने के बावजूद यह मंदिर कलाकारी के मामले में अनूठा है।

 

48 खंभों पर टिका है मंदिर
दिलवाड़ा मंदिर जैन धर्मावलंबियों का प्रसिद्ध मंदिर है। दिलवाड़ा जैन मंदिर राजस्थान राज्य के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। मंदिर का एक-एक हिस्सा ऐसा तराशा हुआ है जैसे अभी बोल उठेगा। कलाकृति और शिल्प का ये बेजोड़ नमूना। मंदिर की दीवारें, खंभे सबकुछ देखकर आंखें ठहर जाती है। इस मंदिर का कोई भी ऐसा कोना नही है जो शिल्प से नहलाया नही गया हो। मंदिर की एक-एक दीवारें आज भी अपनी कहानी कहती हैं। ये वो मंदिर है जिसे देखने के लिए देश ही नही सात समंदर पार से भी लोग आते हैं। दिलवाड़ा का ये मंदिर 48 खंभों पर टिका हुआ है।

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