Home राष्ट्रीय भारत में कैसे हुआ वाशिंग पाउडर या बार सोप का जन्म

भारत में कैसे हुआ वाशिंग पाउडर या बार सोप का जन्म

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डेस्क। क्या आप जानते हैं, 19वीं शताब्दी के आखिरी दशक के पहले तक भारत में ना तो सर्फ था और ना ही कपड़ा धोने वाला साबुन और ड्राई क्लीनिंग जैसी कोई तकनीक भी नहीं थी। ये वो समय हुआ करता था जब आज की तरह भारतीयों के पास ज्यादा कपड़े नहीं होते थे वहीं उनके पास गिने चुने कपड़े होते थे। इसके साथ ही उन्हीं को साफ करके वो अपना काम चलाया करते थे।
वहीं राजे-रजवाड़ों की बात अलग है और उनके पास तो एक से एक महंगे कपड़ों के परिधान भी हुआ करते  थे।  लेकिन तब भारत में कपड़े आखिर साफ कैसे किये जाते थे क्या आप ये जानते हैं। 
क्या आप जानना चाहेगें कि किस तरीके से कपड़े धुलते थे कि साफ होकर चमचमाते थे और आर्गनिक तरीके से साफ होते थे तो शरीर की त्वचा पर भी वो कोई खराब असर नहीं पैदा करते थे।
वहीं क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि जब साबुन और सर्फ नहीं रहे होंगे तो कपड़े कैसे धुले जाते होंगे राजा-रानियों के महंगे कपड़े कैसे साफ होकर चमकते रहे होंगे कैसे आम साधारण व्यक्ति भी अपने कपड़े धोता रहा होगा.

भारत में आधुनिक साबुन की शुरुआत 130 साल के बाद से पहले  ब्रिटिश शासन में हुई थी। लीबर ब्रदर्स इंग्‍लैंड ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन बाजार में उतारने का काम किया तो वहीं पहले तो ये ब्रिटेन से साबुन को भारत में आयात करती थी और उनकी मार्केटिंग भी होती थी। जब भारत में लोग साबुन का इस्तेमाल करने लगे तो फिर यहां पहली बार उसकी फैक्ट्री भी लगाई गई ।

ये फैक्ट्री नहाने और कपड़े साफ करने दोनों तरह के साबुन बनाया करती थीं।  बनाती थी. नॉर्थ वेस्‍ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने 1897 में मेरठ में देश का पहला साबुन का कारखाना लगाया और ये कारोबार खूब फला फूला। उसके बाद जमशेदजी टाटा इस कारोबार में पहली भारतीय कंपनी के तौर पर बिजनेस में कूदे।

वहीं जब भारत में साबुन का इस्तेमाल नहीं होता था तो सोड़े और तेल के इस्तेमाल से साबुन बनाने की कला लोगों को नहीं मालूम थी तो कैसे कपड़ों को धोकर साफ किया जाता था।

रीठा का  होता था  इस्तेमाल

भारत वनस्पति और खनिज से हमेशा ही संपन्न रहा है वहीं यहां एक पेड़ होता है जिसे रीठा कहा जाता है। और तब कपड़ों को साफ करने के लिए रीठा का ही खूब इस्तेमाल होता था। बता दें कि राजाओं के महलों में रीठा के पेड़ अथवा रीठा के उद्यान लगाए जाते थे और महंगे रेशमी वस्त्रों को कीटाणु मुक्त और साफ करने के लिए रीठा आज भी सबसे बेहतरीन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के तौर पर देखा जाता है।

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