Home उत्तर प्रदेश प्रियंका रोक सकती हैं स्मृति ईरानी की राह 

प्रियंका रोक सकती हैं स्मृति ईरानी की राह 

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अगले लोकसभा चुनाव के लिए भले ही दो साल बाकी हों पर भाजपा और कांग्रेस ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी लोकसभा में विजयश्री हासिल करने का कठिन काम सौंपा गया है। 2014 चुनावों मे ईरानी इसी क्षेत्र से लड़ी थीं और काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जीत के अंतर को घटाकर केवल एक लाख के आसपास रोक दिया था। पर क्या वह लगभग असम्भव सा प्रतीत होता काम 2019 मे कर पाएंगी?
हालांकि, 2014 में ईरानी को चुनावी तैयारी करने के लिए बहुत कम समय मिला था, उसके बावजूद उन्हें 3,00,747 वोट मिले जबकि राहुल उनसे कुछ आगे 4,08,650 वोट पर थे। राहुल के खिलाफ आज तक कोई उम्मीदवार इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ईरानी के पहले किसी और उम्मीदवार को राहुल के खिलाफ एक लाख वोट नहीं मिले थे। कांग्रेस यह सीट 1980 से लगातार जीतती आ रही है, बस 1998 में उन्हें एक झटका डॉ संजय सिंह ने दिया था। उस चुनाव मे डॉ सिंह भाजपा से चुनाव लड़े और विजयी भी रहे थे और उनको 2,05,025 वोट मिले थे।
पिछले चुनाव में राहुल को जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था क्योंकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार एक दशक से केन्द्र की सत्ता पर काबिज थी। ईरानी ने इस लहर का पूरा उपयोग किया और राहुल के खिलाफ पहली बार किसी ने कांटे की टक्कर दी लेकिन 2019 में यही सत्ता विरोधी लहर ईरानी के खिलाफ जा सकती है क्योंकि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पांच साल केन्द्र में पूरे होंगे जबकि प्रदेश में भी सत्ता के दो साल हो चुके होंगे। अगर ईरानी किसी तरीके से इस लहर से बच भी जाती हैं तो उनको एक और बड़ी समस्या का सामना करना पड़ेगा।
जिस तरह कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की तबीयत खराब चल रही है, उससे यही प्रतीत होता है कि उनका 2019 मे चुनाव लड़ना मुश्किल होगा। ऐसे में स्थिति यह भी हो सकती है कि राहुल उनके लोकसभा क्षेत्र रायबरेली चले जाएं और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा अमेठी की उम्मीदवार बन जाएं। आने वाले दिनों में राहुल वैसे भी कांग्रेस अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। फिर उनका अपनी मां के क्षेत्र का जिम्मा संभालना स्वाभाविक होगा और अमेठी वासियों के लिए प्रियंका का हाथ बढ़ाया जा सकता है।
अगर ऐसा होता है तो इससे अमेठी का मुकाबला बड़ा रोमांचक हो जाएगा। प्रियंका को अमेठी का चप्पा-चप्पा जाना पहचाना है क्योंकि वह क्षेत्र में तब से प्रचार कर रही हैं, जब से उनकी मां 1999 में पहली बार चुनाव लड़ी थीं। उस वक्त राजनीति में राहुल का पदापर्ण भी नहीं हुआ था। अभी तक राहुल खुलकर ईरानी की कड़ी आलोचना करने से दूर रहे हैं लेकिन प्रियंका से राहुल जैसे व्यवहार की आशा नहीं की जा सकती। 2014 चुनाव प्रचार के दौरान उनका ‘स्मृति कौन’ वाला पलटवार अभी भी लोगों को याद है। प्रियंका का चुनावी मैदान में उतरना कांग्रेस के इतिहास मे एक नया अध्याय होगा। ऐसे में कांग्रेस यही उम्मीद लगा कर बैठेगी कि प्रियंका अपना पहला शिकार स्मृति जैसे एक नामी-गिरामी मंत्री को बनाएं।

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