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यूपी सरकार को दिया सुप्रीम कोर्ट ने आदेश- ‘पेश करें 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की को

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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को शेल्टर होम में रखी गई नाबालिग मुस्लिम लड़की को पेश करने का आदेश दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा लड़की की शादी को अमान्य ठहराए जाने के बाद उसे लखनऊ के बाल गृह में रखा गया है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने लड़की की अपील को सरकारी वकीलों द्वारा अनदेखा किए जाने पर भी यूपी सरकार को लताड़ लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को लड़की का पूरा ख्याल रखने का निर्देश देने के साथ ही लड़की के पिता और ‘पति’ को भी 1 अक्टूबर को उपस्थित रहने का आदेश दिया है। बता दें कि एक 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की ने कहा है कि उसने मुस्लिम कानून के हिसाब से निकाह किया है। वह प्यूबर्टी (रजस्वला) की उम्र पा चुकी है और अपनी जिंदगी जीने को आजाद है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लड़की की शादी को शून्य करार देते हुए उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था।

‘पैरवी के लिए क्यों नहीं दिए वकील, सरकार को लताड़’
जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने प्रदेश सरकार को इस बात के लिए लताड़ लगाते हुए कहा, ‘सरकारी वकीलों को लड़की की याचिका के बाद पैरवी के लिए निर्देश क्यों नहीं दिया। क्या यूपी में सरकार का पक्ष रखने के लिए वकील नहीं हैं? इसके साथ ही महिला को पहले नारी निकेतन में क्यों रखा गया?’ बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी भी शामिल रहे। प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे सीनियर वकील ऐश्वर्य भाटी के यह कहने पर कि लड़की को अब बाल गृह में रख दिया गया है, कोर्ट ने जवाब दिया कि ऐसा हमारे हस्तक्षेप के बाद हुआ है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द कर दी थी याचिका
यूपी की बहराइच की एक अदालत ने 24 जून को अपने फैसले में कहा था कि लड़की की शादी की उम्र नहीं हुई है। कोर्ट ने लड़की को 18 साल की उम्र पूरी करने तक बाल कल्याण कमिटी, बहराइच के पास भेज दिया था। बाद में लड़की के पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दाखिल की थी। बेंच ने लड़की के पति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जूवेनाइल जस्टिस (केयर ऐंड प्रॉटेक्शन) ऐक्ट के तहत लड़की को नाबालिग माना जाएगा और यह शादी अमान्य है। हाई कोर्ट निचली अदालत के फैसले से सहमति जताते हुए लड़की को वूमन शेल्टर होम भेज दिया था।

शाफीन जहां केस के फैसले की दलील
लड़की के वकील पराशर ने शाफीन जहां केस का हवाला दिया। शाफीन के केस में सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में कहा था कि जीवन साथी चुनने का अधिकार संविधान देता है। पराशर ने कोर्ट में दलील दी कि लड़की के पिता उसके जीवन साथी के साथ रहने से रोक रहे हैं। पराशर ने दावा किया कि लड़की ने रजस्वला की उम्र पार करने और वैध निकाहमाना के साथ के लड़के से शादी की है।

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