कांग्रेस ने भगवान भरोसे छोड़ा हिमाचल चुनाव
हिमाचल में एक तरफ पीएम का तूफानी दौरा तो दूसरी तरफ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैली हो रही है. एक तरफ गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हुंकार तो दूसरी तरफ नितिन गडकरी की जनसभा हो रही है. बीजेपी पूरे दमखम से इस पहाड़ी राज्य के चुनावी समर में कूद गई है. लेकिन बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस की तैयारी नज़र नहीं आ रही.
कांग्रेस के प्रचार की कमान एक अकेले वीरभद्र सिंह ने संभाल रखी है. दरअसल राहुल गांधी और वीरभद्र में तनातनी का सीधा असर राज्य में पड़ रहा है और साफ दिख भी रहा है. राजा वीरभद्र सिंह पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अब भी नज़रअंदाज़ करते हैं और सोनिया को ही नेता मानते हैं. ये बात राहुल को इस कदर नागवार गुजरी कि राहुल ने भी चुनावी नतीजे की चिंता किए बिना प्रदेश पहाड़ों के राजा के हवाले कर दिया.
राहुल गांधी फिलहाल गुजरात मे व्यस्त हैं. कांग्रेसी दावा कर रही हैं कि 6 नवंबर को राहुल हिमाचल में 2 रैलियां करेंगे. सोनिया गांधी भी एक रैली करने वाली थीं लेकिन खराब स्वास्थ्य से वो भी संभव नहीं लगता. वीरभद्र राहुल को एक नेता के तौर पर स्वीकार नहीं करते और सोनिया से ही बात करते हैं. पिछले 2 चुनावों से एक तरह से धमकी देकर ही खुद को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनवा रहे हैं. बड़ी मुश्किल से इस बार राहुल ने अपनी पसंद के सुखविंदर सुक्खू को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया.वीरभद्र ने सुक्खू को हटाने की पूरी कोशिश की और धमकी भी दी लेकिन राहुल नहीं झुके. हिमाचल में वीरभद्र अब तक लगभग अपने तरीके से कांग्रेस चला रहे थे जो राहुल के हस्तक्षेप के बाद कुछ हद तक कम हुआ है. लेकिन राहुल अब भी वीरभद्र के साथ सहज नहीं हैं. दोनों के बीच तनातनी का असर हिमाचल की चुनावी रंगत में कांग्रेस की उम्मीद फीका कर रही है. जाहिर है बीजेपी को इसका सीधा फायदा हो रहा है.
83 साल के वीरभद्र इस चुनाव को अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव बता रहे हैं. उन्होंने अपने बेटे को भी चुनावी मैदान में उतार दिया है लेकिन पार्टी में मतभेद इस आखिरी बाज़ी को जीतने के उनके सपने पर पानी फेर सकता है.
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